गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

कथा पुराण-- भाग-1...मेनका की चेली

देवलोक के जरूरत है काबिल डांसरों की। अगर आप हर तरह के म्यूजिक पर थिरकने के साथ-साथ गानें में भी माहिर हैं, तो फौरन अपना बायोडेटा भेजें, सिर्फ एक हफ्ते के अंदर...साथ में अपना फोटो भेजना ना भूलें...
अखबारों में डांसर के लिए ये इश्तेहार क्या छपे, देवलोक में डांसर बनने की ख्वाहिशमंद लड़कियों के बायोडेटा का ढेर लग गया। ज्यादातर ने अपने फोटोग्राफ्स भी भेजे थे। सब की सब एक से बढ़कर एक खूबसूरत। साफ था कि मुकाबला कड़ा होने वाला था। बायोडेटा की स्क्रीनिंग के वक्त मैडम मेनका ने साफ कर दिया कि जिस लड़की ने फोटोग्राफ्स नही भेजे हैं, उनकी उम्मीदवारी पर कोई विचार नहीं होगा। उर्वशी और रंभा ने इसका कड़ा विरोध किया। उनकी दलील थी कि तुरत-फुरत में बायोडेटा मांगे गए हैं, इसलिए मुमकिन है कि कुछ लड़कियां मजबूरीवश फोटो न भेज पाई हों। ऐसी कई लड़कियों के बायोडेटा में उनकी शानदार नृत्य उपलब्धियों का जिक्र है। ऐसे में सिर्फ फोटो की वजह से उन्हें मौका दिए बिना मुकाबले से बाहर कर देना उनकी प्रतिभा के साथ नाइंसाफी होगी। उन्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए बुला लेते हैं, जो अच्छा परफॉर्म न कर पाए, वो खुद ही बाहर हो जाएगी। लेकिन मेनका को ये दलीलें जमी नहीं। दरअसल वो बेवजह अपनी चेलियों के लिए मुकाबला चुनौतिपूर्ण नहीं बनाना चाहती थी। वो खुद जान गई थी कि कई लड़कियां वाकई इतनी टेलेंटेड हैं कि उनके सामने मेनका की चेलियां पानी भी नहीं मांग पाएंगी। ये मेनका को भला क्यों गवारा होता। मैडम मेनका ने नियमों की दुहाई देते हुए कहा कि अगर प्रतियोगिता के पहले की पड़ाव पर नियमों के साथ इस तरह छेड़छाड़ होगी तो फिर तमाशे का क्या मतलब है। आप दोनों चाहें जिसे भर्ती कर लें... मैं अभी चली जाती हूं।
मेनका के इस दांव के सामने रंभा और उर्वशी की एक नहीं चली। वो समझ गईं कि अगर मेनका ने सिलेक्शन कमेटी छोड़ दी तो प्रतियोगिता ही रद्द हो जाएगी और फिर मेनका को अपनी चेलियों की डायरेक्ट भर्ती कराने से कोई नहीं रोक पाएगा। प्रतियोगिता होने की सूरत में तो वो दोनो भी अपनी किसी भतीजी या चेली का सिलेक्शन करवा लेंगी, वर्ना उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा। सब सोच विचारकर दोनों ने मेनका की बात मान ली और बगैर फोटो वाले बायोडेटा डस्टबीन में फेंक दिए गए। बाकी उम्मीदवारों को स्क्रीन टेस्ट के लिए कॉल भेज दी गई। तय वक्त पर स्क्रीन टेस्ट शुरू हुआ। उर्वशी और रंभा ये देखकर दंग थीं कि वहां पहुंचीं कई लड़कियां मैडम मेनका के डांस स्कूल की थी। सब की सब रईस और ऊंचे रसूखवाले घरों की बेटियां, जो डांस सीखने के लिए लाखों रूपए फूंक कर यहां पहुंची थीं। उनकी ड्रेस और लटके-झटके देखकर दरबार में बैठे तमाम लोग आहें भर रहे थे। उर्वशी और रंभा के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी, क्योंकि उन्हें पता था कि मेनका की चेलियां डांस भले ही अच्छा करती हों, गाने के मामले में सब की सब फिसड्डी हैं।
मुकाबले में मेनका की चेलियों ने ऐसी कातिल अदाएं दिखाईं कि देखने वाले दिल थाम कर रह गए। लेकिन बारी जब गाने की आई तो वही हुआ, जिसका डर था। कोई सुर से भटक गई, तो किसी की ताल गड़बड़ा गई... और किसी को गाने के बोल ही ठीक से याद नहीं थे। इस प्रतियोगिता में रंभा और उर्वशी ने सिर्फ अपनी खास करीबियों को ही एप्लाई करने को कहा था। उनका प्रदर्शन औसत ही था। फिर भी दोनों आश्वस्त थीं कि उनकी एक-एक कैंडीडेट का सिलेक्शन पक्का है। इसी बीच, देवलोक के एक काफी पुराने सरकारी डांस स्कूल की कुछ छात्राओं की बारी आईं। उस डांस स्कूल की स्थापना कभी देवलोक के नृत्याचार्य के करकमलों से हुई थी। कभी वो नृत्य शिक्षा का इकलौता केंद्र था। सरकारी खजाने से उसके लिए ग्रांट की बारिश होती थी। लेकिन इन दिनों उसकी वही हालत हो चली थी, जो आजकल हिंदुस्तान में सरकारी स्कूलों और सरकारी अस्पतालों की हो गई है। ना मास्टर, ना डॉक्टर फिर भी जैसे-तैसे चल रहे हैं भगवान भरोसे... खैर, सरकारी डांस स्कूल की छात्राओं के सधे हुए नृत्य और कोयल से मीठे गीतों ने सबका मन मोह लिया। कुछ देर पहले तक इकतरफा दिख रहे मुकाबले में अब कांटे की टक्कर हो गई। मुकाबले में एक तरफ थी सिर्फ प्रतिभा और दूसरी तरफ था बाप का ऊंचा रसूख और हाई प्रोफाइल डांस टीचर्स की सरपरस्ती।
(जारी... आगे है--- मेनका की मनमानी)

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