बुधवार, 15 अगस्त 2007

स्वाधीनता दिवस पर संकल्प

अस्तित्व में बाधक हर कठिनाई जीत चुके हैं
सभ्यता की नई ऊंचाई जीत चुके हैं
किन्तु संयम का सबक सीखना बाकी है
मानव जीवन का मूल्य समझना बाकी है
दिल की दीवारों को चलो मिलकर तोड़ें
मानव रक्त से मानचित्रों को रंगना छोड़ें
आओ, एक कुटुम्ब की भांति रहने का अभ्यास करें
शांति के संकल्प सहित आगे बढ़ने का प्रयास करें...

शुक्रवार, 10 अगस्त 2007

अभाव (1998)

आज भी, दिन पहले की तरह पूरब से चलता है
थक-हार कर सूरज पश्चिम में ही ढलता है
पल-पल मेरा व्यस्तता के साये में पलता है
पर, दिल में कहीं गहरे, एक अभाव सा खलता है।।

आज भी, हर परिचित चेहरा हंस के मिलता है
अनजान शख्स उसी तरह बच के निकलता है
शिकवों की ज्वाला में जीवन क़तरा-क़तरा जलता है
पर, दिल में कहीं गहरे, एक अभाव सा खलता है।।

आज भी, वक्त रेत की भांति हाथों से फिसलता है
कुछ खोने के अहसास से ह्रदय दिन-रात सिसकता है
यूं तो साथ यादों का एक काफ़िला भी चलता है
पर, दिल में कहीं गहरे, एक अभाव सा खलता है।।

कहने को तो पूर्ववत्, सब सामान्य लगता है
पर, हल्का होने को मन अक्सर, किसी कंधे के लिये तरसता है
पश्चाताप की अग्नि में, अस्तित्व मेरा गलता है-
यकीन मानो, दिल में कहीं गहरे एक अभाव सा खलता है...
सचमुच नितांत व्यक्तिगत अभाव.......
11-04-98