शनिवार, 9 फ़रवरी 2008

कथा पुराण-- भाग-1...मेनका का बदला

मेनका के डांस स्कूल के लिए राजकोष के दरवाजे खोल दिए गए। अपने खोए हुए रूतबे और रसूख को वो फिर से हालिस करने लगी। मेनका का फिर से राजनर्तकी बनना मुमकिन नहीं था, लिहाजा उसे देवलोक की संगीत एवं नृत्य परिषद् की मुख्य सलाहकार नियुक्त कर दिया गया। लेकिन ये तो महज एक बहाना था, असल में मेनका का काम देवराज का दिल बहलाना था। जिस दिन राजनर्तकी रंभा और उर्वशी का वीकली ऑफ होता या उनमें से कोई कैजुअल लीव पर होती, उस दिन देवराज के दरबार में सिर्फ मेनका अपने जलवे बिखेरती थी। रंभा और उर्वशी जलभुन जाती, लेकिन मेनका को दिनों-दिन ताकतवर होने से रोक पाना उनके बूते की बात नहीं थी।
इस बार मेनका भी संभल-संभल कर कदम बढ़ा रही थी। वो जानती थी कि बड़ी मुश्किल से अच्छा वक्त लौटा है। राजनर्तकी का दर्जा खोने के बाद बुरे वक्त में मेनका ने एक बात अच्छी तरह समझ ली थी कि देवराज जैसे बड़े लोग सिर्फ मतलब के यार होते हैं। जब तक सबकुछ ठीक है, मददगार बने रहते हैं। मुसीबत पड़ते ही उन्हें नियम, कायदे और कानून याद आ जाते हैं। मेनका ने ठान लिया था कि इस बार प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ का घालमेल नहीं करना है। दोनों को अलग-अलग रखने में ही बेहतरी है। इसीलिए मेनका देवराज को अवॉइड करने लगी। देवराज उसे मिलने के लिए कई मैसेज भिजवाए, लेकिन हर बार मेनका ने कोई ना कोई बहाना बना दिया। आखिरकार देवलोक के स्थापना दिवस पर देवराज को मौका मिल ही गया। अकेली मेनका को देखकर वो सीधे उसके पास जा पहुंचे। इधर-उधर की दो-चार बातें करने के बाद देवराज से मेनका को साफ-साफ बता दिया कि उसके डांस स्कूल के लिए जमीन और सरकारी ग्रांट सिर्फ सूर्यदेव की कोशिशों से मंजूर नहीं हुई, बल्कि उसकी हर फाईल खुद वो ही अप्रूव कर रहे हैं। मेनका ने चार इंची मुस्कान के साथ देवराज को थैंक्स कहा और मौका मिलते ही वहां से कट ली। देवराज बेचारे कसमसाकर रह गए।
देवराज की इस हालत का मेनका पूरा मजा ले रही थी। उसने ठान लिया था कि देवराज का कलेजा फूंक कर वो गिन-गिन कर बदले लेगी। दरअसल अपने बुरे वक्त के लिए मेनका पूरी तरह से देवराज इंद्र को ही जिम्मेदार मानती थी। ना वो उसे ऑपरेशन विश्वामित्र के स्पेशल असाइनमेंट पर भेजते, ना वो विश्वामित्र के इश्क में गिरफ्तार होती और ना ही उस पर देवलोक के कायदे तोड़ने के इल्जाम लगते। ना उससे राजनर्तकी का दर्जा छिनता- ना जिल्लत झेलनी पड़ती। अतीत के झरोखे में झांकते ही हर घटना किसी फिल्मी सीक्वेंस की तरह मेनका की आंखों के सामने घूम जाती थी। ऐसे ही यादों में खोए-खोए एक दिन मैडम मेनका के जहन में एक आइडिया कौंधा। क्यों ना ऑपरेशन विश्वामित्र से हुए अपने नुक्सान की भरपाई के लिए हर्जे-खर्चे का दावा किया जाए...। इतना सोचते ही मेनका की आंखें चमक उठीं। उसने फौरन मोबाइल के कैलकुलेटर से कुछ गुणा-भाग किया। उसके बाद जो रकम सामने आई, वो करोडों में थी। गुरबत के दौर ने मेनका को एक-एक पैसे की अहमियत समझा दी थी। लिहाजा वो देवराज से पाई-पाई का हिसाब कर लेना चाहती थी।
सारी केलकुलेशन कर लेने के बाद मैडम मेनका ने देवराज को फोन किया- हैलो सर, मैं आपसे मिलना अर्जेंट चाहती हूं। आज ही। देवराज को एक बार तो अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। वो तो इतने दिनों से खुद मेनका से मिलने के मौके तलाश रहे थे, और आज खुद मेनका फोन लाइन पर थी। उनसे मिलने के लिए वक्त मांग रही थी। देवराज ने बिना देर किए कहा- हां, हां... जब जी करे चली आओ। तुम्हारे लिए तो हमारे दरवाजे आधी रात को भी खुले हैं। दूसरी तरफ से मेनका बोली- थैंक्स सर, मैं एक घंटे में पहुंच रही हूं।
देवराज ने शाम की सभी अपॉइंटमेंट केंसिल कर दी। वो बेसब्री से मेनका का इंतजार कर रहे थे। ठीक चार बजे मेनका की गाड़ी देवराज के कैंप ऑफिस में दाखिल हुई। उसे पूरे अदब के साथ देवराज के केबिन में पहुंचाया गया। कॉफी ऑर्डर करने के बाद देवराज ने मेनका को कुर्सी ऑफर की और बोले- हां, मीनू डीयर बताओ। (अकेले में देवराज इंद्र मेनका को प्यार से मीनू कहकर ही पुकारते थे। तब मेनका उनके मुंह से मीनू सुनकर खुश होती थी, लेकिन अब मन ही मन कुढ़ रही थी) मेनका ने ऐसा शो किया कि जैसे उसने देवराज की पूरी बात सुनी ही नहीं है। वो बोली- वो बात ऐसी थी सर... मेरे कुछ पिछले बिल बकाया थे... अगर आप की मेहरबानी हो तो.... मेनका की बात पूरी होने से पहले ही देवराज बोल उठे- अरे ये भी भला कोई पूछने की बात है। बिल भिजवा दिए होते, मैं चुटकियों में पास करवा देता। दरअसल देवराज क्राइसिस मैनेजमेंट में जुटे थे, वो मेनका को खुश करने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे, इसीलिए जरा चापलूसी पर उतर आए थे। मैडम मेनका को भी जैसे मौके की ही तलाश थी। फौरन नेहले पर दहला दिया। वो तो ठीक है सर, लेकिन इन दिनों आप कुछ ज्यादा ही कायदे-कानून का ख्याल रखते हैं। डरती हूं कि कहीं देवलोक का संविघान फिर मेरे रास्ते की बाधा न बन जाए...
मेनका के व्यंग्यबाण देवराज के कलेजे को बींधते हुए चले गए और वो उफ तक न कर सके। मेनका को खुश करने के अंदाज में बोले- मीनू डीयर, तुम सिर्फ हुक्म करो। उसे पूरा करना मेरा काम है। बस इतना ध्यान रखना कि इस बारे में सूर्यदेव या किसी और को पता न चले। देवराज का इशारा समझते हुए मेनका बोली- सर, सूर्यदेव को मैं तो कुछ नहीं बताउंगी, लेकिन आप ख्याल रखिएगा। मुझे डर है कि कहीं मेरे बिल देखकर आप उन्हीं से डिस्कस करने ना बैठ जाएं। मेनका के इस वार से देवराज तिलमिला कर रह गए। वो कुछ बोलते उससे पहले ही मेनका ने एक फाइल उनके सामने रख दी। फाइल क्या थी बिलों की पुलिंदा थी। कई साल पुराने टीए-डीए का क्लेम था। कुछ मेडिकल बिल थे। इतनी मोटी फाइल देखकर देवराज बोले- मेनका ये सब क्या है...। मेनका ने जवाब दिया- सर, ये ऑपरेशन विश्वामित्र वाली स्पेशल असाइनमेंट के बिल हैं। आप तो जानते ही हैं, देवलोक के नियमानुसार जब भी कोई अप्सरा किसी स्पेशल असाइनमेंट पर देवलोक से बाहर जाती है, तो वो डबल अलाउंस की हकदार होती है। उसके नियमित वेतन और भत्तों से अलग उसे स्पेशल मेंटिनेंस अलाउंस भी दिया जाता है। लेकिन मुझे एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी गई। ये बात आपसे बेहतर भला कौन जानता है कि ऑपरेशन विश्वामित्र की कामयाबी के बावजूद मुझे दुत्कार और जिल्लत के सिवाय कुछ नहीं मिला... आप मेरा मान तो नहीं लौटा सकते। कम से कम मेरा पैसा तो दिला ही सकते हैं। ये तय मानिए कि जब तक मेरे बिल पास नहीं हो जाते, मैं यहां से जाने वाली नहीं हूं- मेनका ने दो टूक कहा।
(जारी... आगे है-- मेनका के आंसू)

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